भण्डाफोर ब्यूरो-
दुर्गेश वर्मा की रिपोर्ट-
सिद्धार्थनगर, डुमरियागंज । आज डुमरियागंज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों द्वारा पूर्व प्रचारक भारत रत्न पीड़ितों एवं उपेक्षितों के मसीहा स्वo नानाजी देशमुख के जयंती 11 अक्टूबर पर उनके चित्र के समक्ष पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया । इस दौरान शाखा कार्यवाह गौरव पाण्डेय ने नानाजी देशमुख के जीवन से जुड़ी घटना पर प्रकाश डाला। नानाजी देशमुख ने कहा था कि मैं अपने लिये नहीं, अपनों के लिए हूं। अपने वे हैं, जो पीड़ित व उपेक्षित हैं। ये वचन भारत रत्न नानाजी देशमुख के है। नानाजी एक भारतीय समाजसेवी थें। नानाजी देशमुख लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली. आर.एस.एस. के आदि सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। हेडगेवार ने नानाजी की प्रतिभा को पहचान लिया और आर.एस.एस. की शाखा में आने के लिये प्रेरित किया।1940 में, डॉ॰ हेडगेवार जी के निधन के बाद नानाजी ने कई युवकों को महाराष्ट्र की आर.एस.एस. शाखाओं में शामिल होने के लिये प्रेरित किया। नानाजी उन लोगों में थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिये आर.एस.एस. को दे दिया। वे प्रचारक के रूप में उत्तरप्रदेश भेजे गये। आगरा में वे पहली बार दीनदयाल उपाध्याय से मिले। बाद में वे गोरखपुर गये और लोगों को संघ की विचारधारा के बारे में बताया। गोरखपुर में अपने प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख बड़हलगंज से 9 किलोमीटर पहले स्थित हाटा बाजार गांव में, संघ कार्य के विस्तार के लिए आये। यहां पर यहां के निवासी बाबू जंग बहादुर चंद उर्फ जंगी सन्यासी के यहां रहकर, उनको संघ का स्ववयंसेवक बनाया और इस क्षेत्र की पहली शाखा शुरू की, उनके इस राष्ट्र सेवा के कार्य में बाबा राघव दास का भी सहयोग मिलता रहा, उस समय श्री जंगी सन्यासी के बंगले पर क्षेत्र के तमाम मनीषी, संत और राष्ट्रसेवक एक जलती धूनी के पास बैठा करते थे। उस धूनी पर बैठने वालों में प्रमुख नानाजी देशमुख, बाबा राघव दास, स्वामी करपात्री जी महाराज और अन्य लोग थे यह कार्य आसान नहीं था। संघ के पास दैनिक खर्च के लिए भी पैसे नहीं होते थे। नानाजी को धर्मशालाओं में ठहरना पड़ता था,और लगातार धर्मशाला बदलना भी पड़ता था, क्योंकि एक धर्मशाला में लगातार तीन दिनों से ज्यादा समय तक ठहरने नहीं दिया जाता था। अन्त में बाबा राघवदास ने उन्हें इस शर्त पर ठहरने दिया कि वे उनके लिये खाना बनाया करेंगे। तीन साल के अन्दर उनकी मेहनत रंग लायी और गोरखपुर के आसपास संघ की ढाई सौ शाखायें खुल गयीं। नानाजी ने शिक्षा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने पहले सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना गोरखपुर में की।नानाजी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत कुछ इस प्रकार से 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें मोरारजी के मंत्री मंडल में शामिल किया जा रहा था । परंतु उन्होंने यह कहकर कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज की सेवा का कार्य करें। और मंत्री पद ठुकरा दिया।इस कार्यक्रम में अंकुर दूबे, अभिनव श्रीवास्तव, मिथुन चौहान आदि लोग मौजूद थे।